Wednesday, July 21, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में -21


बाल साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर : 
श्री दीनदयाल शर्मा

कभी-कभी मुझे इस बात पर आश्चर्य होता है कि हमारे बीच के ही कुछ साहित्यकार इस बात से चिंतित दिखाई देते हैं कि बच्चों के जाने-पहचाने या प्रसिद्ध लेखक प्राय: नहीं लिख रहे हैं, यह बात बाल साहित्य के लिए अच्छी नहीं है। या फिर बड़ों के लेखक बच्चों के लिए नहीं लिखते, इस कारण बाल साहित्य में स्तरीय रचनाओं का अभाव हो गया है। 

मुझे लगता है ऐसा है नहीं। यह बहुत सीमित सोच की उपज लगती है। अमुक लेखक बड़े हैं, बड़ा नाम है लेकिन बच्चों के लिए नहीं लिखते। ऐसे तथ्य ही बाल-साहित्य को हतोत्साहित करने को काफी हैं। 

एक कारण और मेरी समझ से यह भी है कि बाल साहित्य पर गंभीर रूप से, संजीदगी के साथ समीक्षात्मक कार्य न हो पाने के कारण बाल साहित्यकारों की श्रेष्ठ रचनाएं साहित्य-प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय नहीं बन पाती हैं। शायद इसीलिए हमारे कुछ बौद्धिक साहित्यिक मित्रों, लोगों को लगता है कि देश में बाल-साहित्य सर्जकों की कमी है, या फिर श्रेष्ठ बाल साहित्य अब नहीं रचा जा रहा। यह तो निराशावादी दृष्टि है। 

साथ ही मेरा यह भी मानना  है कि हर लेखक बाल-साहित्य लिख ही नहीं सकता। बच्चों के लिए लिखने में बच्चों जैसा मन प्राप्त करना पहली शर्त है। 

आप बड़ों के मन को भले ही टटोल लेंगे कि भीतर क्या चल रहा है? लेकिन बच्चों के मन की थाह पा लेना आसान नहीं। उनका कल्पना संसार बड़ा अद्भुत है। मौलिक भी है। बच्चों के मन को बांचने, फिर उसे बांध लेने का कौशल प्रदर्शित करना सिद्धहस्त साहित्यकार के लिए ही सम्भव है। ऐसा साहित्यकार ही समय की नब्ज़ को पहचानने और उसी अनुरूप अपनी लेखनी में भी बदलाव कर लेता है। पुराने और नए के बीच सामंजस्य भी बना लेता है। यह प्रसन्नता की ही बात है कि जिन बाल साहित्यकारों ने इस बदलाव को समझ लिया है, उनमें देश के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार दीनदयाल शर्मा भी शामिल है। श्री शर्मा ने हिन्दी साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं में लेखन किया है। अनेक पुस्तकों का संपादन भी इन्होंने किया है। चूंकि स्वयं मन से सरल, सरस, खुश मिज़ाज व्यक्ति हैं इसलिए बाल-साहित्य भी रचते रहे हैं। अपनी रचनाओं में हास्य के रंग भी बिखेरते रहे हैं। इनकी खास बात यह है कि इनका लेखन नियमित रहता है। बाल साहित्य संबंधी गोष्ठियों में भी इनकी जीवंत उपस्थिति दूर-दूर तक रहती है। जैसा सीधा-सादा व्यक्ति है वैसा ही सीधा-सादा व्यक्तित्व। इनकी रचनाओं में नाना प्रकार के भाव एवं आस्वाद सहज रूप से देखने को मिलता है। कोई बौद्धिक लठैतपना नहीं, कोई पांडित्य भी नहीं। सहज, मन का स्पर्श करती हुई लेखनी। 

श्री दीनदयाल शर्मा बाल साहित्य को हर तरह से प्रासंगिक बनाने के अपने संकल्प में हर तरह से समर्पित दिखाई देने वाले साहित्यकार हैं। वे देश के एक महत्वपूर्ण बाल साहित्यकार के रूप में अपनी पहचान तेज़ी से बनाते जा रहे हैं तो मेरे ख्याल से इसके पीछे है- इनकी तर्क दृष्टि। इन्होंने यह अच्छी तरह से समझ लिया है कि अब सन् साठ के बच्चों के लिए नहीं, बल्कि आज के उन बच्चों के लिए लिखना है जो वर्तमान के हमारे जीवन, समाज, संस्कृति, राजनीति, अपराध आदि से अनभिज्ञ नहीं हैं। वे कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले बच्चे हैं। इनके अपने सपने हैं, अपनी अभिलाषाएं हैं, अपनी समस्याएं हैं और जो उनके पालनहारों से काफी भिन्न है। 

इसलिए वर्तमान की कटु सच्चाइयों के समाधान बताने वाली, जीवन में उत्साह, सकारात्मक सोच देने वाली रचनाएं लेकर ही बाल पाठकों से रू-ब-रू होना पड़ेगा। आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए बच्चों को स्वस्थ दिशा-निर्देश देना होगा-उपदेश से नहीं, उनके अपने जीवन और आस-पास के घटते घटनाचक्र के माध्यम से। 

मुझे सदैव इस बात की भी प्रसन्नता रही है कि श्री दीनदयाल शर्मा ने अपने बाल-साहित्य में मनोरंजन और विज्ञान के साथ-साथ सीख और परंपरा को नकारा नहीं है, बल्कि इन सबका सम्मान, स्वीकारोक्ति भाव से, समुचित व परस्पर सामंजस्य बनाए हुए वे बाल साहित्य की रचना कर रहे हैं। मेरी दृष्टि में यह एक बहुत बड़ी बात है। इसलिए भी कि जब महानगर की सीमेंट-कंक्रीट वाली संस्कृति से जुड़े बाल-साहित्यकार के लेखन में से वे विषय तेज़ी से आगे बढऩे के चक्कर में पीछे छूटते जा रहे हैं, जिनमें शामिल है हमारे खेत-खलिहान, गांव, कस्बे, छोटे शहर, समाज, घर-परिवार। दीनदयाल शर्मा अपनी रचनाओं में इन्हें भी साथ लेकर चलते हैं। 

हनुमानगढ़ निवासी कलम का यह सिपाही आज देश में बाल साहित्य का सशक्त हस्ताक्षर है। इस प्यारे इन्सान, संजीदा और बच्चों-बड़ों में समान लोकप्रिय साहित्यकार की लेखनी से उपजी रचनाएं इसी प्रकार हमें मिलती रहेंगी, ऐसी आशा है। हिंदी व राजस्थानी में समानांतर लेखन वाले, अनेक पुस्तकों के रचयिता दीनदयाल शर्मा की कलम को मेरा भी सलाम पहुंचे। हार्दिक शुभकामनाएं। 

-सुधीर सक्सेना 'सुधि'
75/44, शिप्रा पथ, 
मानसरोवर, जयपुर



1-15 अप्रैल, 2010 के बच्चों के अखबार "टाबर टोळी " से साभार




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