Thursday, December 29, 2011
Tuesday, October 4, 2011
बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा सम्मानित
राजस्थान साहित्य अकेडमी और बाल वाटिका की ओर से भीलवाड़ा में आयोजित बाल साहित्य संगोष्ठी एवं पुरुस्कार- सम्मान समारोह में हनुमानगढ़ के बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा को इनकी राजस्थानी बाल संस्मरण कृति " बाळपणे री बातां " के लिए श्री घीसूलाल सेन स्मृति बाल वाटिका पुरुस्कार प्रदान किया गया.. पुरुस्कार स्वरूप इन्हें 2500 रूपये नकद, अंग वस्त्र, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह, श्री फल देकर एवं शाल ओढा कर सम्मानित किया गया..
02 Oct. 2011
02 Oct. 2011
Wednesday, September 28, 2011
Saturday, July 23, 2011
Thursday, April 7, 2011
Tuesday, April 5, 2011
Tuesday, March 29, 2011
मेरी नज़र में : दीनदयाल शर्मा
दीनदयाल शर्मा की नवीन कृति का सदैव इन्तज़ार रहता है।
बाल साहित्य नाम सुनते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐ ऐसा साहित्य जो बालमन, बाल मस्तिष्क एवं बाल हृदय के अनुरूप लिखा जाता हो। कहने को तो भारतभूमि में बाल साहित्यकारों की बाढ़ आयी है। आज की स्थिति को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि हर कोई बाल साहित्य रूपी मन्दाकिनी में प्रविष्ठ होना चाहता हे।
इस सन्दर्भ में अच्छी बात यह है कि इससे बालसाहित्य की लोकप्रियता का आभास होता है। वर्तमान युग में बालसाहित्य काफी चर्चित एवं लोकप्रिय हुआ है। किन्तु बुरी बात हयह है कि हर कोई कलम कागज के साथ बाल साहित्य में अपनी सहभागिता निभाने के लिए उतावला हो रहा है। यही कारण है कि बालसाहित्य जिस स्तर का आना चाहिए वह स्तर नहीं बन पा रहा है, इससे बाल साहित्य के अग्रणी पुरोधाओं के लिए चिन्तित होना स्वाभाविक है। उन अग्रणी बालसाहित्यकारों में एक नाम हनुमानगढ़ के दीनदयाल शर्मा का है।
श्री शर्मा लम्बे समय से बालसाहित्य की सेवा कर रहे हैं। कई संगोष्ठियां, सम्मेलनों एवं कॉन्फ्रें सों में उन्हें सुनने को मिला है। जिससे उनकी खूबियों का अहसास हुआ है। श्री शर्मा बच्चों के लिए लिखते हैं तो बाल मन, बाल मस्तिष्क एवं बाल हृदय को मानो आत्मसात कर लेते हों। लोग कहते हैं बच्चों के लिए लिखने में क्या है? संभवत: ऐसे कथन एवं ऐसे लोगों द्वारा सचेत बालसाहित्य ही बालसाहित्य जगत के खण्डित कर रहे हैं।
बिना बालमनोविज्ञान को समझे बच्चों के लिए लिखना हवा में तीर चलाने जैसा है। श्री शर्मा की खूबी है कि वे बच्चों के लिए लिखते समय बच्चा बनकर ही सोचते हैं और उस चिन्तन से बच्चों के अनुसार शब्द देकर बाल साहित्य का सृजन करते हैं। हम सभी जानते हैं कि बालक का हृदय मोम की तरह होता है उसे जैसा चाहें पिघला सकते हैं। अत: ऐसे मुलायम हृदय पर प्रहार करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए अपितु उस पर मरहम लगाने की कोशिश होनी चाहिए। यों तो श्री शर्मा जी बालमन एवं बाल हृदय को समझकर उनके अनुरूप ही बाल साहित्य का सृजन करते हैं किन्तु उनकी एक विलक्षण खूबी है कि वे उसे अन्तिम रूप देने के पूर्व 25-50 बच्चों को सुनाकर तब अन्तिम रूप देते हैं। यह खूबी ..........बाल साहित्यकारों में ही दृष्टव्य है उनमें श्री शर्मा जी अग्रणी है। यही कारण है कि उनकी बाल कविताएं, क्षणिकाएं, कहानियां बच्चे बड़े चाव से पढ़ते हैं। प्रत्येक कवि एवं लेखक की यह आचार संहिता होनी चाहिए कि वह जिसके लिए लिख रहा है उस रचना को अन्तिम रूप देने के पूर्व उस वर्ग से सन्तुष्ट हो लें। इसके लिए शर्मा जी को आदर्श माना जाता है। उनकी इसी खूबी के कारण उनकी रचनाओं के पाठक अच्छी संख्या में हैं और उन्हें उनकी नवीन कृति का सदैव इन्तज़ार रहता है। यह स्थिति किसी भी लेखक के लिए सुखद कही जा सकती है।
श्री शर्मा जी बालसाहित्य के स्तर को बढ़ाने की दृष्टि से एक पथ टाबर टोल़ी भी निकाल रहे हैं जिसके माध्यम से समय-समय पर बालसाहित्यकारों को स्तरीय साहित्य परोसने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। अपने इस पथ के माध्यम से बच्चों की सृजन क्षमता को वृद्धिंभत करते हुए उन्हें लिखने के लिए एक प्लेटफार्म भी देते हैं। टाबर टोल़ी में प्राय: बच्चों की रचनाएं देखकर प्रसन्नता होती है और हृदय बाग-बाग होकर कह उठता है- 'धन्य हैं आप और धन्य है आपकी सेवाएं ।'
आप बालसाहित्य की सेवा कई दृष्टियों से कर रहे हैं। बाल साहित्य की अनेकानेक विधाओं पर लेखनी चलाकर जहां बच्चों के लिए उपयोगी सामग्री परोस रहे हैं, वहीं अनेकानेक बाल पत्रिकाएं आपकी रचनाओं से समृद्ध हो रही हैं तथा अनेक पुस्तकों का सृजन कर बालसाहित्य को समृद्ध किया है। बालपत्रिका निकालकर अपने बच्चों की सृजनशीलता को बढ़ावा देने का कार्य भी आप अनवरत कर रहे हैं। यही नहीं अच्छे बालसाहित्य को प्रकाशक बनकर प्रकाशित करने का कार्य भी निरन्तर कर रहे हैं। यही नहीं स्थान-स्थान पर भ्रमण कर बालसाहित्य की दशा एवं दिशा से लोगों को जागरुक भी कर रहे हैं तथा बाल साहित्य का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। एक व्यक्ति किन्तु बाल साहित्य के क्षेत्र में उसके विराट एवं बहुविध कृतित्व को देख अन्तर्मन उल्लासित हो उठता है और बधाई देने के लिए प्रेरित होता है। अत: व्यक्तित्व एक किन्तु कृतित्व अनेक के लिए श्री शर्मा जी आपको बहुत-बहुत बधाई तथा शुभकामना कि आप इसी प्रकार युगों-युगों तक बालसाहित्य की सेवा करते रहें।
-डॉ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, निदेशक, जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय, लाडनूं
Subscribe to:
Posts (Atom)