Saturday, July 17, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में -20


बाल साहित्य के क्षेत्र में 
विशिष्ट स्थान रखते हैं दीनदयाल शर्मा

हिन्दी एवं राजस्थानी बाल साहित्य में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं श्री दीनदयाल शर्मा। हिन्दी राजस्थानी भाषा में आपकी अनेक कृतियां प्रकाशित हैं। कुछ रचनाओं का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। 

बाल साहित्य के अलावा  कविता, नाटक, कथा, हास्य व्यंग्य आदि अनेक विधाओं पर आपने कलम चलाई है। आपके लिखे कई नाटक विभिन्न शहरों-गांवों में मंचित हुए हैं, वहीं आकाशवाणी से राज्य स्तर पर समय-समय पर प्रसारित हुए हैं। पगली, मुझे माफ कर दो, उसकी सजा आदि नाटक सामाजिक कुरीतियों पर कटाक्ष करते हैं। साथ ही समाज को एक संदेश भी देते हैं। 

हास्य रचनाओं में आपके 'सेन्स ऑफ ह्यूमर' का पता चलता है। दैनंदिन बातों मं से हास्य निकालने में आपको महारत हासिल है। आपकी हास्य रचनाओं को पढ़कर या सुनकर कोई बिना हंसे या मुस्कुराए रह ही नहीं सकता। आपके व्यंग्य इतने तीखे एवं सटीक होते हैं कि व्यक्ति सोचने पर मजबूर हो जाता है। कोई भी घटना जिस पर व्यंग्य किया जा सकता है, आपकी नज़र से बच नहीं पाया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, प्रशासन, व्यापार जहां भी आपको अनुचित कार्य होता दिखाई देता है, आपकी कलम उस पर तुरंत कटाक्ष करती है। 

लेकिन बाल साहित्य में आपकी विशेष रूचि है। आपने बाल साहित्य में संपूर्ण भारत में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है। बाल साहित्य के क्षेत्र में पहला पाक्षिक अ$खबार 'टाबर टोल़ी' को आरंभ करवाने का श्रेय भी आपको ही हासिल है। आप इस बाल पत्र के मानद संपादक हैं। इस पाक्षिक बाल अखबार में आप बहुत ही ज्ञानोपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाकर बच्चों में अच्छे संस्कार डालने एवं साहित्य के प्रति रूचि बढ़ाने का अति महत्त्वपूर्ण कार्य करने में लगे हुए हैं। जिसकी जितनी सराहना की जाए, कम है। आपने 'टाबर टोल़ी' को झोंपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाया है। दो- दो राष्ट्रपतियों से मुलाकात करना और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम द्वारा 2005 में आपकी किताब 'द ड्रीम्स' का लोकार्पण करना .....यह सौभाग्य किसी विरले लेखक को ही मिलता है। 

साहित्य सृजन के साथ-साथ पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियां भी आप बखूबी निभा रहे हैं। आपके भीतर बैठा कलाकार सिर्फ विद्यालय तक ही कैसे सीमित रह सकता है। आप अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं में पदाधिकारी हैं। साथ ही आप नवोदित लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए नियमित रूप से संगोष्ठियां, पुस्तक चर्चा व कविता पाठ जैसे  आयोजन भी समय-समय पर करते हुए साहित्य सेवा में रत हैं। आप आकाशवाणी  व दूरदर्शन पर अपनी रचनाओं को पेश कर श्रोता/दर्शकों को लाभान्वित करते रहते हैं। 

बाल  साहित्य में आपकी रूचि एवं इस क्षेत्र में आपके कार्यों के कारण आप भारत के बाल साहित्यकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। आपको विभिन्न संस्थाओं एवं अकादमियों द्वारा समय-समय पर सम्मानित एवं पुरस्कृत किया है। जो आपकी साहित्यिक सेवा का ही फल है। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

अर्जुनदान चारण, 
सहायक वन संरक्षक,
फलौदी, जिला: जोधपुर, राज.
मोबाइल : 09414482882

16 अप्रैल, 2010 के बच्चों के अखबार टाबर टोळी से साभार

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में -19

दीनदयाल शर्मा : एक कर्मठ बाल साहित्यकार

प्रिय अनुज दीनदयाल शर्मा को मैं पिछले दो दशकों से जानता हंू। मैंने सदैव इन्हें एक उत्साही बाल साहित्यकार के रूप में देखा है और ये आज भी उसी उत्साह, उमंग और निश्छलता के सम्य बाल सहित्य की सच्ची सेवा करने में जुटे हैं। निरंतर लेखन और प्रकाशन में लीन हैं। मैं उनकी लगन की मुक्त कंठ से प्रशंसा करता हंू। ये बच्चों के उत्थान में दैनंदिन लगे रहते हैं। आलस्य और सुस्ती का कहीं कोई नाम निशान नहीं।

बच्चों के लिए भरपूर साहित्य सृजन करने वाले प्रिय भाई दीनदयाल राजस्थान के बाल साहित्यकारों में अपना नाम स्थापित कर चुके हैँ और उत्तरी भारत में बाल साहित्य का दीपक प्रज्ज्वलित करने वाले अग्रणी बाल साहित्यकार हैं। टाबर टोल़ी पाक्षिक अब एक जाना-माना पत्र बन चुका है और इसका श्रीगणेश भाई दीनदयाल जी के निर्देशन में हुआ। टाबर टोल़ी अपने ढंग का एक अनूठा पत्र है। इसके नाम से स्पष्ट हो जाता है कि यह शुद्ध रूप से बच्चों का, बच्चों के लिए और अभिभावकों के लिए हैं। स्वयं बच्चे इस पत्र में छपते रहे हैं।

एक अच्छा बाल साहित्कार होने के लिए सर्वप्रथम एक अच्छा व्यक्ति होना अनिवार्य है। भाई दीनदयाल जी शुद्ध  आचरण वाले तथा सरल व्यक्ति हैं और इन्हीं गुणों के कारण वे उत्कृष्ट साहित्य रचने में सफल हुए हैं और भविष्य में मील के कई पत्थर स्थापित करेंगे। 

मैं भाई दीनदयाल जी के इस विचार से सहमत हंू कि आज हर कोई बाल साहित्यकार बनने में जुटा है या यों कहें कि बाल साहित्य में घुसपैठ हो रही है। मैं ऐसे कई तथाकथित बाल साहित्यकारों को जानता हंू जो प्रौढ़ों के लिए लिखने का प्रयास किया करते थे। वहां असफल होने पर बाल साहित्य में आकर घुस गए। जबकि बच्चों से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है।

जब आप बच्चों के क्रियाकलापों को नियमित नहीं देखेंगे तथा उनके संपर्क में नहीं रहेंगे तो आप बाल साहित्यकार बन ही नहीं सकते। अत: बच्चों का साहचर्य, बच्चों के स्नेह और प्यार को प्राप्त करना अत्यावश्यक है।

इस संक्षिप्त लेख के अंत में भाई दीनदयाल जी के स्वस्थ, दीर्घ और उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता हंू। बाल गोपाल मण्डली, जो टाबर टोल़ी से जुड़ी हुई है, को ढेर सारी शुभकामनाएं अर्पित करता हंू। बाल देवो भव:।

रामनिरंजन शर्मा 'ठिमाऊ',
पिलानी, जिला: झुंझुनूं, राज.
मोबाइल : 9413484840

16 अप्रैल, 2010 के बच्चों के अखबार टाबर टोळी से साभार

Friday, July 16, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में -18

सीधे-सरल और हंसोड़ प्रवृत्ति के 
इन्सान हैं दीनदयाल शर्मा

लेखन यात्रा के शुरुआती कदम थे। बाल कहानियां लिखता था। कदम डगमगाते, संतुलन बिगड़ता तो भाई राकेश शरमा (अब दिवंगत) और मासूम गंगानगरी अंगुली थाम कर गिरने से बचाते। राज्य व राष्ट्रीय स्तर की कुछ पत्र-पत्रिकाओं में बाल कहानियां छपी तो मित्रों ने राय दी कि बाल कथा संग्रह छपवाया जाए। अनुभव था नहीं, किसी ने बताया कि हनुमानगढ़ में दीनदयाल शर्मा हैं, वे प्रकाशन में मार्गदर्शन कर देंगे और पुस्तक छपवा भी देंगे। 

संयोग से अगले दिन राजस्थान पत्रिका में दीनदयाल शर्मा की कविताएं छपीं। नीचे पता भी छपा था। मैंने एक पोस्टकार्ड डाल कर एक पुस्तक छपवाने की इच्छा जताई। चार दिन बाद ही जवाब मिला, इस उलाहने के साथ कि आपने मेरा पता राजस्थान पत्रिका से लिया लेकिन कविताओं का जि़क्र ही नहीं किया। मैं अनाड़ी आदमी, उस समय न तो कविता पर टिप्पणी करनी आती थी और न ही इतनी समझ थी कि कविताओं से बात शुरू कर पुस्तक तक आना चाहिए। 

खैर! दीनदयाल जी ने हनुमानगढ़ आकर मिलने का न्यौता दिया तो एक रविवार को बाल कथाओं की पांडुलिपि लेकर पहुंच गया उनके घर। दीनदयाल शर्मा व भाभीजी ने पूरी आवभगत की। तीन घण्टे की बैठक में दीनदयाल जी ने मुझे स्पष्ट राय दी कि मैं नया हंू। मुझे किताब छपवाने की जल्दी नहीं करनी चाहिए। फिर भी मेरा दिल रखने के लिए उन्होंने पांडुलिपि रख ली। 

बाद में उनमें से मेरी एक बाल कहानी उन्होंने अपने संपादन में निकले कुछ बाल कथाकारों के संकलन में भी शामिल की। इस बीच मेरा भी विचार बना कि मैं पुस्तक छपवाने की जल्दी न करूं। मैंने दीनदयाल जी को पत्र लिखकर पांडुलिपि मांगी। उन्होंने बताया कि बाल कथा संग्रह संपादन के दौरान वह पांडुलिपि दिल्ली ले गए थे और वह पांडुलिपि अब भी दिल्ली में एक प्रेस पर पड़ी है। 

पांडुलिपि मांगने का यह सिलसिला साल भर तक चला और एक दिन दीनदयाल जी ने बताया कि जमुना में बाढ़ आने से वह पांडुलिपि व प्रेस की बहुत सारी सामग्री बह गई है। अब वह नहीं मिल सकती। यह बात 1987-88 की है। दो दशक से भी ऊपर समय बीत जाने के बाद मुझे लगता है कि जमुना की बाढ़ में बही मेरी बाल कथाओं की पांडुलिपि ने दीनदयाल शर्मा से मेरी मित्रता और भी गहरा कर दिया है।

इलाहाबाद में जब मुझे मीरा स्मृति सम्मान मिला तो अपनी 85 वर्षीया माताश्री के साथ दीनदयाल जी व भाभीजी श्रीमती कमलेश शर्मा के सान्निध्य में तीन-चार दिन प्रयाग धाम में रहने का अवसर मिला।  उन दिनों को मेरी मां आज भी याद करती है। मेरी मां का जितना ख्याल दीनदयाल जी व भाभीजी ने रखा, उतना मैं स्वयं भी नहीं रख पाया। उन दिनों की स्मृति ही हमारी पूंजी है।

दीनदयाल शर्मा सीधे-सरल और हंसोड़ प्रवृत्ति के इन्सान हैं। हर बात पर चुटकला उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है, मुझे लगता है कि जिस स्कूल में वे कार्यरत हैं, वहां के बच्चे कितना कुछ सीखते होंगे इस सरल हृदयी इन्सान से। आमीन।

कृष्णकुमार 'आशु', पत्रकार व साहित्यकार
128, मुन्शी प्रेमचन्द कॉलोनी, 
माइक्रोवेव टावर के पास, 
पुरानी आबादी, श्रीगंगानगर
मो. 9414658290
9772608000

16 अप्रैल, 2010 के बच्चों के अखबार टाबर टोळी से साभार

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में -17

बहुमुखी प्रतिभा के धनी : दीनदयाल शर्मा

'टाबर टोल़ी' का अंक जब-जब पढऩे का सौभाग्य मिला......मैं श्री दीनदयाल शर्मा द्वारा लिखित रचना या कॉलम ढंूढ़ता रहा। आओ सीखें : शुद्ध लेखन हो या समीक्षा, लेख हो या कविता, हिन्दी में हो या राजस्थानी में....वे प्रभावी लिखते हैं और पाठक पर छाप छोडऩे वाला लेखन करते हैं। बच्चों के लिए तो वे निरन्तर लिखते रहे हैं और सम्मानित-पुरस्कृत होते रहे हैं। यह एक गौरवपूर्ण बात हैं वे इस तन्मयता से सृजनरत हैं और साहित्य की श्रीवृद्धि कर रहे हैं।

'टाबर टोल़ी' के माध्यम से नया कीर्तिमान रचा है। अपनी संपादकीय सूझबूझ से उन्होंने अनेकानेक लेखकों-कवियों को जोड़ा है और विपुल साहित्य प्रस्तुत किया है। एक बाल-पत्र को नियमितता देकर राज्य में बाल साहित्य के रचनाकारों को मंच प्रदान किया है।

इतनी-इतनी उपलब्धियों के बाद भी वे विनम्र हैं, समर्पित हैं एवं आदर्श हैं। बाल साहित्य में उनका नाम सम्मान के साथ जुड़ा है। देशभर में अपनी पहचान बनाने वाले श्री दीनदयाल शर्मा उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर बढ़ रहे हैं। पर, अकेले नहीं, कई रचनाधर्मी मित्रों को साथ लेकर।

एक तथ्य जो मैंने महसूस किया वे जोड़ तोड़ से ऊपर हैं। कोई भी रचनाकार हो, उसे उचित सम्मान देते हैं चाहे परिचित हो या न हो। खेमेबाजी से दूर रह कर ही वे इतना कुछ श्रेष्ठ कर पाये हैं। उनकी पुस्तकों पर मेरे अन्य मित्रों ने विस्तार से चर्चा की है। वे नि:संदेह प्रशंसा के योग्य हैं। अनेक शुभकामनाएं ऐसे रचनाकार के लिए।

-डॉ.विनोद सोमानी 'हंस',
42/43, जीवन विहार कॉलोनी, 
आना सागर सरक्यूलर रोड, 
अजमेर-305004, राज.
दूरभाष : 0145-2627479

16 अप्रैल, 2010 के बच्चों के अखबार 'टाबर टोल़ी' से साभार


दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में -16

संवेदनशील बाल साहित्यकार : 
श्री दीनदयाल शर्मा

वरिष्ठ बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा को बाल साहित्य के क्षेत्र में वरिष्ठ हस्ताक्षर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कृतियों के रचयिता शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मान-सम्मान, पुरस्कार में कई उपलब्धियां हासिल कर चुके शर्मा अपनी बेबाक शैली के लिए भी जाने जाते हैं। राजकीय सेवा में होने के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों से उनका जनजुड़ाव प्रेरणास्पद है। ग्रामीण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े शर्मा ने शैक्षिक दृष्टिकोण से उदाहरण प्रस्तुत किया है। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की है।

संवेदनशील साहित्यकार:
शर्मा की कृतियां बच्चों के लिए प्रेरणास्पद होने के साथ-साथ मनोरंजन की दृष्टि से भी उच्च कोटि की है। 'कर दो बस्ता हल्का' पुस्तक जहां बाल-गोपालों को हास्य से विभोर करवाती है, वहीं प्रेरणादायक भी है। 'चमत्कारी चूर्ण' पुस्तक की कहानियां भी कमोबेश यही छाप छोड़ती हैं। इस पुस्तक की कहानी 'आज़ादी का अर्थ' शर्मा के संवेदनशील लेखक होने का अहसास करवाती है। राजस्थानी बाल एकांकी 'म्हारा गुरुजी' में उन्होंने जिस विनोदी अंदाज में शिक्षकों की कार्य प्रणाली को उजागर किया है, वह शर्मा की बेबाक लेखनी की ओर इशारा है।  

मातृभाषा के प्रति लगाव: 
शर्मा का मातृभाषा के प्रति लगाव उल्लेखनीय है। यही कारण है कि हिन्दी में लेखकीय कार्य में विशेष स्थान होने के साथ-साथ राजस्थानी भाषा पर भी उनकी विशेष पकड़ है। राजस्थानी में उनकी पुस्तकें विशेष सराहनीय है। 'शंखेसर रा सींग' राजस्थानी बाल नाटक उनकी मातृ भाषा के प्रति समर्पण की जीवंत मिसाल है। बकौल शर्मा, 'जब तक मनुष्य अपनी मातृभाषा से नहीं जुड़ेगा, वह राष्ट्र के प्रति समर्पित भी नहीं होगा। यही कारण है कि वह राजस्थानी भाषा के मान्यता आंदोलन में सक्रियता सहभागिता निभा रहे हैं।

सादा जीवन उच्च विचार :
सादा जीवन उच्च विचार की अवधारणा को साक्षात जीवन में उतरते देखना हो तो दीनदयाल शर्मा उदाहरण हैं। दिखावे एवं आडम्बरों से कोसों दूर रहने वाले शर्मा सब के प्रति समान भाव रखते हैं। समय के पाबन्द शर्मा कैसी भी परिस्थितियां हों निर्धारित समय पर पहुंचते हैं। वर्ष 2007 में एकता मंच द्वारा आयोजित होली स्नेह मिलन की घटना उनके समय के कद्रदान होने की शिनाख्त करती है। आयोजक निर्धारित समय पर अभी तैयारियां ही कर रहे थे, कि शर्मा दो किलोमीटर दूर अपने घर से पैदल चलकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए। 

प्रोत्साहन में अग्रणी: 
युवा लेखकों, साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों को प्रोत्साहन देने में दीनदयाल शर्मा हमेशा अग्रणी रहे हैं। उनका मानना है कि संघर्ष के दौर में हर किसी को सहयोग की आवश्यकता होती है। ऐसे में वरिष्ठजन सहयोग नहीं करेंगे तो युवा कैसे आगे बढ़ेंगे। यही कारण है कि साहित्य सम्मेलनों, कवि गोष्ठियों के लिए आर्थिक सहयोग के साथ-साथ उचित मंच में युवा लेखकों के आलेख प्रकाशित करवाने में उनका मार्गदर्शन हमेशा बना रहता है। उनके मार्गदर्शन में चलने वाले राजस्थान बाल कल्याण परिषद्, टाबर टोल़ी एवं सम्पर्क प्रकाशन ने दर्जनों उभरते लेखकों-कवियों को पुस्तक प्रकाशन में सहयोग प्रदान किया है। 

हंसो और हंसाओ : 
दीनदयाल शर्मा कहते हैं हंसना जीवन में उसी प्रकार जरूरी है जैसे खाना-पीना आवश्यक है। बकौल उनके हंसना स्वस्थ शरीर के लिए टॉनिक का कार्य करता है। वर्तमान समय में जब प्रतिस्पद्र्धा चरम पर है सब कोई तनावमय जीवन जी रहा है, ऐसे में उनका लतीफों के माध्यम से हंसी की फुहार छोडऩा सबको अपनी तरफ आकर्षित करता है। साहित्य सम्मेलनों-कवि गोष्ठियों और कार्यक्रमों में भी शर्मा बात ही बात में ऐसी बात कह देते हैं कि गंभीर से गंभीर प्रवृत्ति का श्ख्स भी मुस्करा देता है। शर्मा के अनुसार हंसो और हंसाओ ही जि़न्दगी का फलसफा है। 

पुस्तकों को प्रोत्साहन देने की अनोखी ललक: 
शर्मा पुस्तकों के पठन पर ज्यादा जोर देते हैं। उनके अनुसार पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है। इन्हें जितना ज्यादा पढ़ेंगे, उतना ही बौद्धिक विकास होगा, पुस्तकों के प्रति इस लगाव का परिणाम है कि उन्होंने पांच साल पहने अपने बूते पर गांव-गांव पुस्तक मेले लगा कर साहित्यिक पुस्तकें वितरित की। अपने थैले में पुस्तकें डाल कर नफे-नुकसान की परवाह किए बिना उन्होंने पुस्तक मेलों में पुस्तकें बांटी। हनुमानगढ़ क्षेत्र में आपने साक्षरता केन्द्रों पर 51,000 की साहित्यिक पुस्तकें नि:शुल्क देने पर इन्हें जयपुर के बिड़ला सभागार में सर्वाधिक पुस्तक दानदाता के सम्मान से नवाजा गया। ऐसे पुस्तक प्रेमी एवं वरिष्ठ साहित्यकार को नमस्कार।

मनोज गोयल , पत्रकार, 
हनुमानगढ़-335512

16 अप्रैल, 2010, टाबर टोळी से साभार