Friday, July 16, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में -16

संवेदनशील बाल साहित्यकार : 
श्री दीनदयाल शर्मा

वरिष्ठ बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा को बाल साहित्य के क्षेत्र में वरिष्ठ हस्ताक्षर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कृतियों के रचयिता शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मान-सम्मान, पुरस्कार में कई उपलब्धियां हासिल कर चुके शर्मा अपनी बेबाक शैली के लिए भी जाने जाते हैं। राजकीय सेवा में होने के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों से उनका जनजुड़ाव प्रेरणास्पद है। ग्रामीण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े शर्मा ने शैक्षिक दृष्टिकोण से उदाहरण प्रस्तुत किया है। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की है।

संवेदनशील साहित्यकार:
शर्मा की कृतियां बच्चों के लिए प्रेरणास्पद होने के साथ-साथ मनोरंजन की दृष्टि से भी उच्च कोटि की है। 'कर दो बस्ता हल्का' पुस्तक जहां बाल-गोपालों को हास्य से विभोर करवाती है, वहीं प्रेरणादायक भी है। 'चमत्कारी चूर्ण' पुस्तक की कहानियां भी कमोबेश यही छाप छोड़ती हैं। इस पुस्तक की कहानी 'आज़ादी का अर्थ' शर्मा के संवेदनशील लेखक होने का अहसास करवाती है। राजस्थानी बाल एकांकी 'म्हारा गुरुजी' में उन्होंने जिस विनोदी अंदाज में शिक्षकों की कार्य प्रणाली को उजागर किया है, वह शर्मा की बेबाक लेखनी की ओर इशारा है।  

मातृभाषा के प्रति लगाव: 
शर्मा का मातृभाषा के प्रति लगाव उल्लेखनीय है। यही कारण है कि हिन्दी में लेखकीय कार्य में विशेष स्थान होने के साथ-साथ राजस्थानी भाषा पर भी उनकी विशेष पकड़ है। राजस्थानी में उनकी पुस्तकें विशेष सराहनीय है। 'शंखेसर रा सींग' राजस्थानी बाल नाटक उनकी मातृ भाषा के प्रति समर्पण की जीवंत मिसाल है। बकौल शर्मा, 'जब तक मनुष्य अपनी मातृभाषा से नहीं जुड़ेगा, वह राष्ट्र के प्रति समर्पित भी नहीं होगा। यही कारण है कि वह राजस्थानी भाषा के मान्यता आंदोलन में सक्रियता सहभागिता निभा रहे हैं।

सादा जीवन उच्च विचार :
सादा जीवन उच्च विचार की अवधारणा को साक्षात जीवन में उतरते देखना हो तो दीनदयाल शर्मा उदाहरण हैं। दिखावे एवं आडम्बरों से कोसों दूर रहने वाले शर्मा सब के प्रति समान भाव रखते हैं। समय के पाबन्द शर्मा कैसी भी परिस्थितियां हों निर्धारित समय पर पहुंचते हैं। वर्ष 2007 में एकता मंच द्वारा आयोजित होली स्नेह मिलन की घटना उनके समय के कद्रदान होने की शिनाख्त करती है। आयोजक निर्धारित समय पर अभी तैयारियां ही कर रहे थे, कि शर्मा दो किलोमीटर दूर अपने घर से पैदल चलकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए। 

प्रोत्साहन में अग्रणी: 
युवा लेखकों, साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों को प्रोत्साहन देने में दीनदयाल शर्मा हमेशा अग्रणी रहे हैं। उनका मानना है कि संघर्ष के दौर में हर किसी को सहयोग की आवश्यकता होती है। ऐसे में वरिष्ठजन सहयोग नहीं करेंगे तो युवा कैसे आगे बढ़ेंगे। यही कारण है कि साहित्य सम्मेलनों, कवि गोष्ठियों के लिए आर्थिक सहयोग के साथ-साथ उचित मंच में युवा लेखकों के आलेख प्रकाशित करवाने में उनका मार्गदर्शन हमेशा बना रहता है। उनके मार्गदर्शन में चलने वाले राजस्थान बाल कल्याण परिषद्, टाबर टोल़ी एवं सम्पर्क प्रकाशन ने दर्जनों उभरते लेखकों-कवियों को पुस्तक प्रकाशन में सहयोग प्रदान किया है। 

हंसो और हंसाओ : 
दीनदयाल शर्मा कहते हैं हंसना जीवन में उसी प्रकार जरूरी है जैसे खाना-पीना आवश्यक है। बकौल उनके हंसना स्वस्थ शरीर के लिए टॉनिक का कार्य करता है। वर्तमान समय में जब प्रतिस्पद्र्धा चरम पर है सब कोई तनावमय जीवन जी रहा है, ऐसे में उनका लतीफों के माध्यम से हंसी की फुहार छोडऩा सबको अपनी तरफ आकर्षित करता है। साहित्य सम्मेलनों-कवि गोष्ठियों और कार्यक्रमों में भी शर्मा बात ही बात में ऐसी बात कह देते हैं कि गंभीर से गंभीर प्रवृत्ति का श्ख्स भी मुस्करा देता है। शर्मा के अनुसार हंसो और हंसाओ ही जि़न्दगी का फलसफा है। 

पुस्तकों को प्रोत्साहन देने की अनोखी ललक: 
शर्मा पुस्तकों के पठन पर ज्यादा जोर देते हैं। उनके अनुसार पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है। इन्हें जितना ज्यादा पढ़ेंगे, उतना ही बौद्धिक विकास होगा, पुस्तकों के प्रति इस लगाव का परिणाम है कि उन्होंने पांच साल पहने अपने बूते पर गांव-गांव पुस्तक मेले लगा कर साहित्यिक पुस्तकें वितरित की। अपने थैले में पुस्तकें डाल कर नफे-नुकसान की परवाह किए बिना उन्होंने पुस्तक मेलों में पुस्तकें बांटी। हनुमानगढ़ क्षेत्र में आपने साक्षरता केन्द्रों पर 51,000 की साहित्यिक पुस्तकें नि:शुल्क देने पर इन्हें जयपुर के बिड़ला सभागार में सर्वाधिक पुस्तक दानदाता के सम्मान से नवाजा गया। ऐसे पुस्तक प्रेमी एवं वरिष्ठ साहित्यकार को नमस्कार।

मनोज गोयल , पत्रकार, 
हनुमानगढ़-335512

16 अप्रैल, 2010, टाबर टोळी से साभार

No comments:

Post a Comment