के रचनाकार : दीनदयाल शर्मा
आपका दीद हो जाए और हमारी ईद हो जाए। पिछले 7-8 सालों से एक मधुर वाणी कानों में मिश्री सी घोल रही है। जी हां, मैं परम श्रद्धेय दीनदयाल शर्मा जी की ही बात कर रहा हंू। जब इनसे फोन/मोबाइल पर बात होती है तो मिलने के लिए दिल बेचैन होकर तड़पने लगता है। अफसोस.... उनके दर्शन (दीद) से आज तक महरूम हंू। मगर उनके द्वारा की गई हौसला अफजाई और मार्ग दर्शन से साहित्य रूपी गुलशन में फल फूल रहा हंू।
श्री शर्मा के व्यक्तित्व एवं सृजन से कई साहित्यकार एवं कार्यकर्ता प्रभावित हुए हैं। आत्मा की आवाज़ तो यह है कि आज न केवल राजस्थान बल्कि सम्पूर्ण भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में ऐसे ज्ञानवान पुरुष के प्रकाश पुंज ने 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' को अभिनव दृष्टि से भारत वर्ष को आलोकित किया है।
बाल जगत के सितारों में श्री शर्मा जी एक अलग ही सूर्य हैं। जिसकी विसरित किरणें बिलौरी कांच पर एकत्रित होती हैं, वह है-टाबर टोल़ी (बच्चों का अखबार) , जो विगत कई वर्षों से राष्ट्रीय स्तर के नवांकुर साहित्यकारों एवं काव्यकारों को संचरित करता है।
श्रीयुत् दीनदयाल शर्मा के अनेक आलेख विभिन्न संकलनों, स्मारिकाओं, पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं, जिनमें उनकी कल्पना, चेतना और मेधा के दर्शन होते हैं। आप सफल पत्रकार, कवि, साहित्यकार व वक्ता होने के साथ-साथ गृहस्थ पति व पिता भी हैं।
आप अपने सभी दायित्वों का निर्वहन कुशलता के साथ कर रहे हैं। आपने समाज चिंतकों, सृजनधर्मी विचारकों व प्रबुद्धजन के साथ मिलकर एक बेहतर समाज बनाने के लिए संभव प्रयास किए हैं। आपकी श्लाघनीय सक्रियता व बाल साहित्य सृजन की अनूठी शैली से अभिभूत कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए अपार हर्ष की अनुभूति करता हंू। समाज और साहित्य को समर्पित इस विराट व्यक्तित्व के धनी श्री शर्मा जी के लिए मेरी कलम का लिखना सूर्य को दीपक बताने जैसा है।
मेरी एक विनम्र कामना है कि आपका यही सार्थक चिंतन व सामाजिक भागीदारी का विराट दृष्टिकोण बना रहे। आप यशस्वी जीवन व सुख समृद्धि के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ते रहें, आने वाली लम्बी आयु में हिन्दी भाषा बाल साहित्य, समाज एवं देश की अनवरत सेवा करते रहेंगे। यही हमारी अंतस की शुभकामनाएं हैं।
अब्दुल समद राही
पुत्र अब्दुल सत्तार हाजी रहीम बख्श,
सिलावट मौहल्ला, ढाल की गली,
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