बाल कथा के सुरीले गायक : दीनदयाल शर्मा
श्री दीनदयाल शर्मा संभवत: एक मात्र ऐसे बाल साहित्यकार हैं, जिनकी अंग्रेजी नाट्य कृति "The Dreams" को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के कर कमलों से लोकार्पण का सौभाग्य प्राप्त है। लोकार्पण भी ऐसा आह्लादकारी कि कृति की थीम सुनते ही महामहिम के मुख से अनायास ही निकल पड़ा- EXCELLENT.... यह शायद समीक्षा थी-एक श्रेष्ठ कृति की, एक उद्भट द्वारा, मात्र एक शब्द में एक कृति की ऐसी विशद्, विस्तृत और सटीक व्याख्या और कौन कर कर सकता है- डॉ. कलाम जैसे प्रखर चिन्तक के अलावा। ऐसे प्रबुद्ध व्यक्ति ही किसी रचना के मर्म को पहचान कर उसके सर्वांगीण मूल्यांकन हेतु ऐसे किसी एक सार्थक शब्द की शोध करते हैं।
वैसे तो दीनदयाल शर्मा ने व्यंग्य, नाटक, एकांकी, निबन्ध, पत्रकारिता आदि साहित्य की अनेक विधाओं में अभिनव प्रयोग किए हैं, लेकिन उनका मन विशेष रूप से बाल कविताओं और बाल कहानियों के लेखन में रमा है। श्री शर्मा की यह अपनी विशेषता रही है कि वे कथा को कहते नहीं, अपितु गाते हैं जिससे उसमें एक निश्चित प्रवाह, लय, गति और छन्दमयी गेयता स्वत: आती चली जाती है और कहानी कविता का आनन्द देने लगती है।
श्री शर्मा की कविताओं में स्थितियां बहुत शीघ्रता से बदलती हैं। वे कभी सतरंगी हो जाती हैं, तो कभी बहुरंगी। कभी-कभी उनकी कविता केवल एक खूबसूरत चित्र होती है-खिलते हुए फूल का, चहचहाती हुई चिडिय़ा का, बच्चे के अधरों पर फैली पवित्र मुस्कान का या उसकी आंखों में अनायास उमड़ आये निर्मल आंसुओं का। दीनदयाल शर्मा इन चित्रों को इतनी कुशलता से उकेरते हैं कि एक बार जब इनके चटक रंग उनके शब्दों से तादाम्य स्थापित कर लेते हैं, तो देखने वाले की दृष्टि उस आकर्षण के जादू से सहज मुक्त नहीं हो पाती।
कभी-कभी उनकी कविता संक्षिप्त कथा संदर्भ लिए लघु आख्यायिका सी प्रतीत होती है, तो कभी कोई विराट् संदेश अपने में छिपाये सूक्ति कथन सी। उनकी कविता कभी उपदेश नहीं होती। शिक्षाप्रद होना या बोध परक होना अलग बात है। निर्णय लेना कठिन होता है कि कविता उन्होंने बच्चों के लिए लिखी है, बड़ों के लिए, गुरुजन के लिए या अभिभावकों के लिए। एक उदाहरण याद आता है। कविता थी-
बस्ता भारी
मन है भारी
कर दो बस्ता हल्का
मन हो जाए फुलका।
मन कभी फुलका नहीं होता, इसे तीसरी पंक्ति के हल्का शब्द से जोडऩा पड़ेगा। फिर आप इसके दोनों अर्थ लेने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगे कि बस्ता हल्का होते ही बच्चे का मन भी फुलके के समान हल्का-फुलका हो जाएगा। चार पंक्तियों की यह कविता एक निजी स्कूल के संचालक को इतनी पसंद आई कि उसने इसके पोस्टर छपवा कर सारे शहर में बंटवा दिये। अस्तु।
मंच की महारत तो दीनदयाल शर्मा को हासिल है ही। कवि सम्मेलन चाहे ग्रामीण क्षेत्र का हो या, चाहे शहरी क्षेत्र का। अपनी हास्य व्यंग्य कविताओं के साथ जब वे मंच पर पदार्पण करते हैं, तो जोरदार तालियों की गडग़ड़ाहट उनका भव्य स्वागत करती है। फिर एक के बाद एक फरमाइशी कविताओं की झड़ी लग जाती है, जिन्हें बच्चे, बूढ़े, नौजवान सब एक सी एकाग्रता और तन्मयता से सुनते हैं-ठहाके लगाते हैं, आनंदित होते हैं।
'टाबर टोल़ी' विगत सात वर्षों से अनवरत छप ही रही है। पूरी पत्रिका में दीनदयाल शर्मा के बहुआयामी व्यक्तित्व की गहरी छाप तथा इनके पूरे परिवार के परिश्रम की मुंह बोलती तसवीर स्पष्ट झलकती है। इसीलिए अब यह मात्र बच्चों की ही पत्रिका नहीं रह गई है। द्वितीय वेतन श्रंृखला हिन्दी अध्यापक पद के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों की दृष्टि एक दिन टाबर टोल़ी पर पड़ गई, तो बोले-यह हमें मिल सकती है सर? मेरे मुंह से निकला-यह तो बच्चों की पत्रिका है।
नहीं सर, अशुद्धि संशोधन के रूप में इसमें शब्दों के शुद्ध रूप दे रखे हैं और सामान्यज्ञान के 100 प्रश्न भी। यह तो हमारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है सर। और वे सभी विद्यार्थी 50-50 रुपये वार्षिक शुल्क ले आए। अत: मैंने सभी का वार्षिक शुल्क भिजवाया, तो उन्हें बड़ी निश्चिंतता और संतुष्टि मिली।
कहना चाहिए कि दीनदयाल शर्मा केवल एक कवि, व्यंग्यकार या बाल साहित्यकार ही नहीं, अपितु अपने आपमें एक साहित्यिक अनुष्ठान, नये रचनाकारों के लिए प्रेरणापुंज और साहित्य मनीषियों के लिए एक चलता-फिरता सृजनधर्मी प्रतिष्ठान है।
जनकराज पारीक,
29, मण्डी ब्लॉक,
श्रीकरणपुर-335073
मोबाइल : 09414452728
(श्री पारीक जी वरिष्ठ कथाकार, कवि एवं गीतकार हैं। आपकी कथा कृति 'शिकार तथा अन्य कहानियां' अकादमी से पुरस्कृत है। काव्य कृति 'अब आगे सुनो...' और 'सूखा गांव' काफी चर्चित रही है। आप राजस्थान साहित्य अकादमी की सरस्वती सभा के सदस्य रहे हैं। आप 40 वर्षों तक शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद की सेवाएं देकर वर्तमान में स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। इन दिनों आप कुछ अस्वस्थ हैं।)
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