सरल और मासूम शिशु की भांति
एक निश्छल आभा के धनी दीनदयाल शर्मा
जी हां, बाल साहित्याकाश का एक ऐसा सूरज जिसे हम दीनदयाल जी शर्मा के नाम से जानते हैं। दीनदयाल जी जैसे सुप्रबुद्ध तथा सशक्त व्यक्तित्व के बारे में कुछ भी कहना या लिखना मेरे लिए बड़ा ही चुनौती भरा कार्य रहा है। क्योंकि मेरे पास इतने शब्द ही नहीं है जिनके द्वारा मैं अपने मनोभावों को व्यक्त कर सकूं। इसके अलावा मन एक और उलझन में फंस गया कि सर्वप्रथम कौनसी बात लिखूं, चयन नहीं कर पा रही हूं। मन के जितने भी भाव हैं, उन्हें सर्वप्रथम ही लिखना चाहती हूं और ऐसा संभव है नहीं।
बाल साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा का नाम किसी के लिए भी नया नहीं है। जिन विद्वान साहित्यकारों, कवियों, साहित्य/संस्कृति को मैंने अपने जीवन की साध माना है उनमें बाल साहित्यकार श्री दीनदयाल शर्मा का नाम सर्वप्रथम आता है। जसाना में जन्मे व पले-बढ़े श्री शर्मा जी आज उम्र में मेरे पापा के हमउम्र हैं। लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता, क्योंकि जहां तक मैं जानती हूं'' ये तो बच्चे हैं। क्योंकि ये हृदय से एकदम बच्चे की तरह सरल और निश्छल हैं। मैंने महसूस किया है कि उनमें आज भी एक बच्चे का दिल धड़कता है, और इसीलिए मैंने उन्हें बच्चा कहा है। हर वक्त इनके मुखमण्डल पर एक सरल और मासूम शिशु की भांति एक निश्छल आभा विराजमान रहती है जो किसी के भी मन को मोह लेने में सक्षम है। साथ ही एक खास बात और जो मेरे अंतस में गहरे तक उतरती है, ये बच्चों के साथ बच्चे और बड़ों के साथ बड़े हो जाते हैं। विषय हास परिहास का चल रहा हो तो आप दिल खोलकर हंसते-हंसाते हैं और यदि विषय गंभीर हो तो इनके चेहरे पर सागर सी गहराई झलकती है। साथ ही इनकी स्पष्टवादिता हरेक के मन में गहरे तक उतर जाती है।
सामान्य कद-काठी के साथ-साथ ये असाधारण व बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। अपनी अनुपम विचार शक्ति, प्रखर बुद्धि और ओजस्विता से सबको चकित कर देते हैं। इनकी हंसी अकृत्रिम है। इनके समक्ष बैठने के पश्चात परिचय का अभाव नहीं खलता। हर एक से मुक्त हृदय से मिलना-जुलना इनके स्वभाव में शामिल है। मालूम होता है कि श्री शर्मा जी किसी का भी दिल नहीं तोडऩा चाहते। इनका मुखर व्यक्तित्व हर अनजान को अपना बनाने का सामथ्र्य रखता है। आपके चेहरे पर दृढ़ निश्चयी होने के भावों के साथ ही संतोष के भाव झलकते हैं तथा पोशाक में सादगी है। इनके उठने बैठने, चलने-फिरने को देखकर पता चलता है कि जीवन में सादगी प्रिय है। कुछ और बातों पर है, जिनमें साहित्य पत्रकारिता, अध्यापन व बीसियों किस्म की अन्य सामाजिक जिम्मेदारियां शामिल हैं।
जिस सभा में श्री दीनदयाल जी हों वहां उदासी एवं हताशा नहीं ठहरती। ऊर्जा का निरंतर प्रवाह इनके व्यक्तित्व में दिखाई देता है। जो इनके सानिध्य में आने वालों को भी ऊर्जावान बना देता है। ये जहां भी होते हैं, अपने वात्सल्य से सभी को कायल करने से जान पड़ते हैं। आप हैं ही कुछ ऐसे की आपकी मधुर वाणी सुनने वालों के कानों में मधुरस घोलती सी जान पड़ती है।
श्री दीनदयाल जी का पारिवारिक वातावरण भी संस्कारित एवं आत्मीयतापूर्ण है। वहां जाकर कोई भी अपने अजनबीपन को बनाये नहीं रख सकता। अतिथि की वहां खैर नहीं है, क्योंकि इस परिवार के द्वारा निस्वार्थ भाव से की गई खातिरदारी अतिथि को एकदम फलक पर बैठा देती है। मुझे कई बार इस परिवार से मिलने का सौभाग्य मिला है। बनावट से कोसों दूर यह परिवार भारतीय संस्कृति का सजीव उदाहरण है। साहित्य मानव मन का ही भाव साम्राज्य होता है। जो बाहरी संसार हम देख रहे हैं उससे कहीं अधिक विस्तृत जगत हमारे मन में स्थित है। आवश्यकता होती है मन पर से अविचार का कोहरा छंटने की और श्री शर्मा जी से तो यह कोहरा कोसों दूर तक दिखाई ही नहीं देता।
आज जब सब और अंग्रेजी भाषा और सभ्यता की दुहाई दी जा रही है ऐसे समय में अपनी मातृभाषा में बाल मन को साहित्य के माध्यम से शिक्षित और संस्कारित करने का प्रयास श्री शर्मा जी कर रहे हैं वह अपने आप में अद्भुत है। शास्त्रों में कहा गया है कि सृष्टि की रचना शब्द से हुई है। उसी शब्द ब्रह्मा की उपासना साहित्यकार अपनी-अपनी शैली में करते हैं। सरस्वती पुत्र अपनी लोकोत्तर प्रतिभा के द्वारा एक शब्द संसार की रचना करता है जो कि मानवीय समस्याओं को स्पष्ट रूप से उभारता है। नामरूपात्मकं विश्वं यदिदं दृश्यते द्विधा। तत्राघस्य कविर्वेधा, द्वितीयस्य चतुर्मुख:।। अर्थात् नाम और रूपात्मकं जो दो प्रकार का यह संसार दीख प्रड़ता है, उसमें से आदि अर्थात् नामात्मक जगत का निर्माणकर्ता कवि है और रूपात्मक जगत का निर्माणकर्ता ब्रह्मा है। इसी प्रकार श्री दीनदयाल शर्मा शब्द संसार की रचना करके भावी पीढ़ी को संस्कारित करने में प्राणपण से लगे हैं।
हिन्दी और राजस्थानी भाषा में आपका रचनाकर्म विविध खूबियों को संजोये हुए है। आपने अपने काव्य में बाल मनोविज्ञान को बहुत ही निकट से समझा है। बाल मन की जो समस्याएं सामान्य व्यक्ति को स्पष्ट नहीं हो पाती, वो आपके काव्य में मुखर हो उठती है। बाल साहित्य तीर्थ के महायात्री व शब्दयोगी श्री शर्मा जी ने आज बाल साहित्य को उस मुकाम पर पहुंचाया है जहां हम उनके बाल साहित्य पर गर्व कर सकते हैं। जीवन के अच्छे और बुरे दोनों रूपों का आपको गहरा अनुभव है और अहसास भी। आपके अनुभवों की कोई सीमा नहीं है। बाल जीवन से जुड़ी बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी चीज आपकी कलम का निशाना होती है और जहां तक मैं जानती हूं,
ये सिर्फ लिखते नहीं, तन्मय होकर लिखते हैं, जीते हैं उसे। महसूस करते हैं, डूबते हैं उसमें। तभी तो सच्चा साहित्य मोती निकालकर लाये हैं हमारे सामने। वैसे भी मोती तो गोताखोर ही निकालते हैं भीगने से डरने वाले नहीं। यशस्वी बाल साहित्य पाठक को अपने नजदीक लाता है। बचपन के सामान्य अनुभव और अनुभूतियों से कैसे सार्थक और पठनीय साहित्य लिखा जा सकता है, इस तथ्य को श्री शर्मा जी के बाल साहित्य में स्पष्ट महसूस किया जा सकता है। आपके साहित्य में बाल जीवन के व्यापक चित्र दिखाई देते हैं जो पाठक दृष्टि को चिन्तनशील बनाते हैं। आपके काव्य में हास्य के साथ-साथ व्यंग्य का चुटिलापन भी रहता है जो कि पाठक या श्रोता के हृदय को झकझोरता है। देश एवं समाज की दुर्दशा के बारे में सोचने को विवश करता है।
आपके बहुत से व्यंग्य शिक्षक वर्ग की कमजोरियों और अकर्मण्यता को लेकर हैं जो सिद्ध करते हैं कि आप बालकों की शिक्षा को लेकर कितने गंभीर है। श्री दीनदयाल जी ग्रामीण और शहरी जीवन से गहरा सरोकार रखते हैं इसलिए आपके साहित्य में ग्रामीण और शहरी जीवन की सभी समस्याओं, विडम्बनाओं का प्रामाणिक लेखा-जोखा मिलता है। आपका बाल साहित्य ठोस यथार्थ के धरातल पर खड़ा हुआ दिखाई देता है। जिसमें कोरी काल्पनिक उड़ान की कोई गुंजाइश नहीं है।
आप कवि हैं, लेखक हैं, पत्रकार हैं और साथ ही एक अध्यापक भी हैं लेकिन इन सबसे पहले आप एक जागरुक समाज सेवक हैं। आपका बाल साहित्य बच्चों और समाज के लिए मनमोहक उपहार है। बाल साहित्य सृजन आपकी तपस्या है, साधना है और इस साधना में आपका समर्पण भाव अभिनंदनीय है। इसी समर्पण भाव से आपने हिन्दी और राजस्थानी भाषा में बाल साहित्य को पूरी लगन और निष्ठा से प्रस्तुत किया है जिसमें जीवन के विभिन्न रंग अपनी सहजता और सरलता से प्रत्येक पाठक को लुभाने में सक्षम है। आपके बाल साहित्य में बाल मन की भावात्मक सुन्दरता के साथ-साथ कम शब्दों में भावों की अभिव्यक्ति बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यंजित हुई है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी और समाज सेवक श्री दीनदयाल जी ने पत्रकारिता के कार्य से भी समाज सेवा का बीड़ा उठाकर इस कार्य का सुन्दर ढंग से निर्वाह किया है। 'टाबर टोल़ी' पाक्षिक तथा 'कानिया मानिया कुर्र' त्रैमासिक जैसे पत्रों में आप दैनन्दिन समाचारों के साथ-साथ उत्कृष्ट कविताओं, कहानियों व अन्य साहित्यिक प्रकाशन भी करते हें, जिससे नवोदित प्रतिभाओं को राजस्थानी, हिन्दी लेखन का भरपूर अवसर आप उपलब्ध करा रहे हैं। जो कि साहित्यिक उत्थान में एक सार्थक प्रयत्न है। मैंने साहित्य के प्रकाश पुंज श्री दीनदयाल जी के बारे में बहुत सुना, पढ़ा और जाना। परन्तु स्थिति एकदम वैसी ही है जैसी भूषण कवि के समक्ष आयी- ''साहू को सराहौ के सराहौ छत्रसाल को।''
मैं भी किसकी सराहना करूं? जहां इनका साहित्य भावों के भोलेपन से युक्त है वहीं इनके स्वभाव की दृढ़ता मेरे मन को गहराइयों तक स्पर्श करती है। श्री शर्मा जी सिर्फ लिखते ही नहीं, उसे जीते भी हैं। सिर्फ छूते नहीं महसूस करते हैं। सिर्फ देखते नहीं गौर करते हैं। सदा मुस्कुराना और सबको प्यार करना, गुणीजन का सम्मान पाना, बच्चों के दिल में रहना और सच्चे आलोचकों की स्वीकृति पाना, आदि बातें आपके स्वभाव में शामिल हैं। साथ ही आप खूबसूरती की सराहना करते हैं दूसरों में खूबियां तलाशते हैं और बिना किसी उम्मीद के दूसरों के लिए खुद को अर्पित कर देते हैं। आपके इन्हीं गुणों के बारे में सोचकर मेरा अन्र्तमन आलोकित हो उठता है।
मां सरस्वती की कृपा आप पर हमेशा यूं ही बनी रहे तथा आप अपने अनुभव, चिन्तन आत्मीयता और समर्पण से बाल साहित्य जगत को अपनी लेखनी द्वारा समृद्ध करते रहें तथा आपका आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ बना रहे। इसी आशा और आपके सुदीर्घ स्वस्थ जीवन की मंगलकामनाओं के साथ।
कृष्णा जांगिड़ 'कीर्ति', जसाना
मोबाइल : 08003355965
बच्चों के अखबार "टाबर टोळी " से साभार...
Edition : 16 - 31 March , 2010
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