Sunday, June 6, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में - 5
















समर्पित एवं आदर्श बाल साहित्यकार : दीनदयाल शर्मा

बाल साहित्य का नाम सुनते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसा साहित्य जो बालमन, बाल मस्तिष्क एवं बाल हृदय के अनुरूप लिखा जाता हो। कहने को तो भारतभूमि में बाल साहित्यकारों की बाढ़ आयी है। आज की स्थिति को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि हर कोई बाल साहित्य रूपी मन्दाकिनी में प्रविष्ट होना चाहता हे। इस सन्दर्भ में अच्छी बात यह है कि इससे बालसाहित्य की लोकप्रियता का आभास होता है। वर्तमान युग में बालसाहित्य काफी चर्चित एवं लोकप्रिय हुआ है। किन्तु बुरी बात यह है कि हर कोई कलम कागज के साथ बाल साहित्य में अपनी सहभागिता निभाने के लिए उतावला हो रहा है। यही कारण है कि बालसाहित्य जिस स्तर का आना चाहिए वह स्तर नहीं बन पा रहा है, इससे बाल साहित्य के अग्रणी पुरोधाओं के लिए चिन्तित होना स्वाभाविक है। उन अग्रणी बालसाहित्यकारों में एक नाम हनुमानगढ़ के दीनदयाल शर्मा का है। श्री शर्मा लम्बे समय से बालसाहित्य की सेवा कर रहे हैं। कई संगोष्ठियां, सम्मेलनों एवं कॉन्फ्रेन्सों में उन्हें सुनने को मिला है। जिससे उनकी खूबियों का अहसास हुआ है।

श्री शर्मा बच्चों के लिए लिखते हैं तो बाल मन, बाल मस्तिष्क एवं बाल हृदय को मानो आत्मसात कर लेते हों। लोग कहते हैं बच्चों के लिए लिखने में क्या है? संभवत: ऐसे कथन एवं ऐसे लोगों द्वारा सचेत बाल साहित्य ही बाल साहित्य जगत को खण्डित कर रहे हैं। बिना बाल मनोविज्ञान को समझे बच्चों के लिए लिखना हवा में तीर चलाने जैसा है। श्री शर्मा की खूबी है कि वे बच्चों के लिए लिखते समय बच्चा बनकर ही सोचते हैं और उस चिन्तन से बच्चों के अनुसार शब्द देकर बालसाहित्य का सृजन करते हैं। हम सभी जानते हैं कि बालक का हृदय मोम की तरह होता है उसे जैसा चाहें पिघला सकते हैं अत: ऐसे मुलायम हृदय पर प्रहार करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए, अपितु उस पर मरहम लगाने की कोशिश होनी चाहिए।

यों तो श्री शर्मा जी बालमन एवं बाल हृदय को समझकर उनके अनुरूप ही बाल साहित्य का सृजन करते हैं किन्तु उनकी एक विलक्षण खूबी है कि वे उसे अन्तिम रूप देने के पूर्व 25-50 बच्चों को सुनाकर तब अन्तिम रूप देते हैं। यह खूबी विरले बाल साहित्यकारों में ही दृष्टव्य होती है, उनमें श्री शर्मा जी अग्रणी है। यही कारण है कि उनकी बाल कविताएं, क्षणिकाएं, कहानियां बच्चे बड़े चाव से पढ़ते हैं। प्रत्येक कवि एवं लेखक की यह आचार संहिता होनी चाहिए कि वह जिसके लिए लिख रहा है उस रचना को अन्तिम रूप देने के पूर्व उस वर्ग से सन्तुष्ट हो लें। इसके लिए शर्मा जी को आदर्श माना जाता है। उनकी इसी खूबी के कारण उनकी रचनाओं के पाठक अच्छी संख्या में हैं और उन्हें उनकी नवीन कृति का सदैव इन्तज़ार रहता है। यह स्थिति किसी भी लेखक के लिए सुखद कही जा सकती है।

श्री शर्मा जी बाल साहित्य के स्तर को बढ़ाने की दृष्टि से एक पथ 'टाबर टोल़ी' भी निकाल रहे हैं जिसके माध्यम से समय-समय पर बाल साहित्यकारों को स्तरीय साहित्य परोसने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। अपने इस पथ के माध्यम से बच्चों की सृजन क्षमता को वृद्धिंभत करते हुए उन्हें लिखने के लिए एक प्लेटफार्म भी देते हैं। 'टाबर टोल़ी' में प्राय: बच्चों की रचनाएं देखकर प्रसन्नता होती है और हृदय बाग-बाग होकर कह उठता है- 'धन्य हैं आप और धन्य है आपकी सेवाएं ।'

आप बाल साहित्य की सेवा कई दृष्टियों से कर रहे हैं। बाल साहित्य की अनेकानेक विधाओं पर लेखनी चलाकर जहां बच्चों के लिए उपयोगी सामग्री परोस रहे हैं, वहीं अनेकानेक बाल पत्रिकाएं आपकी रचनाओं से समृद्ध हो रही हैं तथा अनेक पुस्तकों का सृजन कर बाल साहित्य को समृद्ध किया है। बाल पत्रिका निकालकर आपने बच्चों की सृजनशीलता को बढ़ावा देने का कार्य अनवरत कर रहे हैं। अच्छे बाल साहित्य के प्रकाशन में भी आप निरन्तर मार्गदर्शन कर रहे हैं। यही नहीं, स्थान-स्थान पर भ्रमण कर बाल साहित्य की दशा एवं दिशा से लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं तथा बाल साहित्य का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। एक व्यक्ति किन्तु बाल साहित्य के क्षेत्र में उसके विराट एवं बहुविध कृतित्व को देखकर अन्तर्मन उल्लासित हो उठता है और उन्हें बधाई देने के लिए प्रेरित होता है। अत: व्यक्तित्व एक किन्तु कृतित्व अनेक के लिए श्री शर्मा जी को बहुत-बहुत बधाई तथा शुभकामना कि आप इसी प्रकार युगों-युगों तक बाल साहित्य की सेवा करते रहें।

डॉ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी 'रत्नेश',
निदेशक, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय,
जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय,
लाडनूं, राजस्थान


बच्चों के अखबार "टाबर टोळी " से साभार...
Edition : 16 - 31 March , 2010

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