दीनदयाल शर्मा : बालकों
के लिए समर्पित व्यक्तित्व
दीपक की भांति संसार में
जलता है कोई कोई
वृक्ष की भांति संसार में
फलता है कोई कोई
यूं तो आदर्श की राह पर
चलने को कहते रहते हैं सभी,
पर इन राहों पर चलते हैं
'दीद' से कोई कोई।
बाल मनोविज्ञान के ज्ञाता रचनाकार व सबसे विनम्र स्वभाव से मिल जाने वाले इन्सान दीनदयाल शर्मा पर ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। श्री शर्मा के साथ शिक्षा की विभिन्न लेखन कार्यशालाओं के माध्यम से जुडऩे का अवसर मिला। हंसमुख एवं मिलनसार व्यक्तित्व से अपनी अलग पहचान शीघ्र ही बना लेता है, कलम के धनी इस रचनाकार ने बाल साहित्य में कुछ अलग करने, देशभक्ति की अविरल धाराएं बहाते हुए, अपने कार्य के प्रति निष्ठा को जिस रूप में आगे बिखेरा कि हर सदन, मानस पटल, साहित्यकारों, रचनाकारों के मध्य वे अपनी अमिट छाप छोडऩे में सफल रहे हैं। साहित्य ऐसा हो जो हमें विचार करने पर बाध्य करे, बच्चों में जिज्ञासा एवं आत्मविश्वास की वृद्धि करे।
श्री शर्मा की लेखनी ऐसी ही अमृतवर्षा करने को आतुर रहती है। आप द्वारा लिखी गई आधुनिक बाल कहानियां बच्चों को भारतीय संस्कृति से न केवल प्रेम करना सिखाती है वरन् उनमें नई सोच पैदा करने की क्षमता को भी आगे बढ़ाती है। युवा पीढ़ी को सीख देने वाली रचनाएं, छोटी बाल कविताएं व संस्कारों से परिपूर्ण बाल कहानियां आधुनिक युग की महत्ती आवश्यकताएं हैं, रचनाकारों को सरस्वती के मान सम्मान को प्रमुखता देने की बात करते हुए आप कहते हैं कि ''हमें वर्तमान के अश्लील, फूहड़ साहित्य का भरसक विरोध करते हुए, बालकों को नैतिक मूल्य एवं अपनी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने वाले बीजों का संग्रहण करने का पाठ सिखाना चाहिए।
व्यंग्य वह विधा है जो साहित्यिक क्षेत्र में कलम को तलवार से भी तेज धार वाला हथियार साबित कर देती है, श्री शर्मा को इस विधा में भी महारत हासिल है। टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले सीरियल जो हमारे सामाजिक पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं, पर व्यंग्यात्मक लहजे में सीधा सा आपका उत्तर ''आजकल की नानी, बच्चों को नहीं सुनाती कहानी'' क्योंकि बच्चे व बड़े न चाहते हुए भी टी.वी. के चिपके रहते हैं। क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर पाश्चात्य सांस्कृतिक हमलों से छिन्न-भिन्न हो जाएगी, इस प्रश्र का उत्तर भी जिस सटीकता से आपने दिया है उससे हमें इस देश में जन्म लेने के गौरव को और भी अधिक प्रतिपुष्ट कर दिया। आपने कहा था-
मां अपनी ममता को
छोड़ नहीं सकती।
बाहुबली की भुजाएं
नदियां मोड़ नहीं सकती।।
संस्कृति की दीवार
इतनी समृद्ध है हमारी,
फिरंगियों की ताकत
इसे तोड़ नहीं सकती।।
सामाजिक कत्र्तव्यों को निभाते हुए व राजकीय सेवा में पूर्ण निष्ठा से आपका समर्पण आधुनिक युग में भौतिकता की अन्धी दौड़ में समाज में एक दीपक की भांति रोशनी बिखेरता हुआ सही राह दिखाने वाला प्रतीत हो रहा है, आज जब अधिकांश व्यक्ति किसी अच्छे कार्य को करने के लिए 'समय नहीं है' का बहाना लिए टालना चाहते हैं आपके लिए यह कहना युक्ति युक्त होगा कि-
अपने लिए जीए तो क्या जीए।
तूं जी ए दिल ज़माने के लिए।।
छोटे बच्चों के लिए ढेर सारा प्यार एवं अनमोल रचनाएं लेकर हर समय अपनी उपस्थिति देने वाले इस व्यक्तित्व को सादर नमन एवं उज्ज्वल मंगलमय जीवन हेतु शुभकामनाएं।
सुनील कुमार डीडवानिया,
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