Sunday, June 6, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में - 8















दीनदयाल शर्मा शिक्षक और पत्रकार 
अर्थात् सोने पर सुहागा

शिक्षक जो बच्चों को ज्ञान देता है, वह स्वभावत: विनम्र और मननशील होता है। वह देश के भावी नागरिक तैयार करता है। यदि वह पत्रकार भी हो तो उसकी पैठ समाज और देश की हलचलों में भी हो जाती है और वह देश तथा समाज का प्रहरी और निर्माता बन जाने की राह का राही भी हो जाता है। हुई न सोने पर सुहागे वाली बात।

श्री दीनदयाल शर्मा मूलत: शिक्षक हैं। उनका कार्य क्षेत्र पाठशाला तक सिमिट कर रह जाता यदि उनमें समाज का सेवक बनकर काम करने की लगन न होती। तब उनसे मेरी भेंट भी कैसे होती। मेरा निवास जयपुर और उनका हनुमानगढ़ जं.। कुछ मैं चला अपने क्षेत्र से बाहर, लेखक बनने का सपना लेकर, कुछ उन्हें ललक हुई लेखन कला पत्रकारिता की ओर कदम बढ़ाने की। तब संयोग बना कि हम दोनों पहली बार वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में 'बालवाटिका' पत्रिका के एक साहित्यिक आयोजन में मिले और वह परिचय परवान चढ़ता गया।

कई वर्ष बाद मुझे दीनदयाल जी से दोबारा पिलानी के एक बालसाहित्य कार्यक्रम में दो दिन के लिए मिलना हुआ। उसमें हिन्दी बाल जगत के कई दिग्गज लेखक और विद्वान पधारे थे, जैसे कानपुर से बाल साहित्य के पुरोधा डॉ.श्रीकृष्णचन्द्र तिवारी 'राष्ट्रबन्धु' और दिल्ली से नन्दन के संपादक डॉ.जयप्रकाश भारती जी। भीलवाड़ा से भी कई साहित्यकार बन्धु इस सम्मेलन में भागीदारी के लिए आए थे। उनमें डॉ. भैरूंलाल गर्ग, संपादक, बाल वाटिका भी थे। उस समय भाई दीनदयाल जी को अपने उत्कृष्ट बाल साहित्य सृजन कर्म के लिए भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर की ओर से सम्मानित किया जाना था।

श्री दीनदयाल जी से समय-समय पर मिलने का सिलसिला चलता रहा और एक बार 'बाल गंगा', जयपुर के एक स्मृति सम्मान समारोह में पधारकर उन्होंने मुझे आनन्दित किया। वे वर्ष 2008 , 4 अगस्त को इलाहाबाद में हुए 'मीरा स्मृति सम्मान समारोह' में भी मुझे मिले, जो साहित्य भंडार, प्रयाग के एक बड़े प्रकाशक श्री सतीशचन्द्र अग्रवाल ने अपनी दिवंगत पत्नी पुण्यात्मा मीरा अग्रवाल की स्मृति में डॉ.राष्ट्रबन्धु की संस्था बाल कल्याण संस्थान, कानपुर के सहयोग से 4 अगस्त 2008 को आयोजित किया था। उल्लेखनीय है कि उस सम्मेलन में बाल काव्य कृति 'बाल गीत गंगा' तथा मीरा स्मृति प्रथम सम्मान पुरस्कार मुझे प्रदान किया था। उस समय श्री दीनदयाल शर्मा (मानद साहित्य संपादक ,'टाबर टोली' ) ने पाक्षिक अखबार 'टाबर टोली' की वहां खूब सारी प्रतियां बंटवाई। जिसे देशभर से पधारे साहित्यकारों-पत्रकारों ने सराहा।

श्री शर्मा की प्रगति का रथ उनके 'टाबर टोली' के नियमित प्रकाशन के साथ निरंतर अग्रसर है। इनमें शिक्षक, लेखक, संपादक और प्रकाशक के साथ-साथ अच्छे समीक्षक के गुण से मुझे प्रसन्नता होती है। जब मैं उनके अखबार में अपनी कविताएं और पुस्तक समीक्षाएं छपे हुए देखता हूँ। यह पाक्षिक अखबार अब बच्चों की मैगज़ीन का रूप ले चुका है। इसमें कविताएं, कहानियां, चुटकुले, पहेलियां, बूझो तो जाने, दिमागी कसरत, शुद्ध शब्द लेखन आदि स्तंभ बच्चों का भरपूर मनोरंजन करने क लिए पर्याप्त बालोपयोगी सामग्र प्रस्तुत करते हैं। इस कारण 'टाबर टोल़ी' समाज, शिक्षण संस्थाओं, पंचायतों और ग्राम्य विकास कार्यकर्ताओं यानी सभी से गहराई से जुड़ गया है। इसका श्रेय भाई दीनदयालजी के प्रतिभावान एवं कर्मठ व्यक्तित्व को है। मैं उनकी निरंतर प्रगति और समृद्धि की कामना करता हूँ

सीताराम गुप्त, जयपुर,
दिनांक : 26/2/2010

मोबाइल : 09414770139


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