Sunday, June 6, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में - 3



























ऊर्जावान रचनाकार : दीनदयाल शर्मा

पांच मार्च, 2006 : मैं जयपुर के अजमेर रोड क्षेत्र के एक होटल जैसे गेस्ट हाउस में ठहरा हुआ था। सुबह-सुबह कमरे पर दस्तक हुई। दरवाजा खोला तो चुस्त-दुरुस्त व्यक्ति के दर्शन हुए। बोले, ''मैं दीनदयाल शर्मा, हनुमानगढ़ से....आप?''


मैं भगवतीप्रसाद गौतम कोटा से....आइए। मेरे आग्रह पर वे पास के बेड पर बैठ गए और कहने लगे, ''कैसा संयोग है कि सफर के दौरान जिनके बारे में सोचता आया, सबसे पहले उन्हीं से भेंट हुई।'' यह प्रसंग जुड़ा था 'बाल चेतना'...के वार्षिक सम्मान समारोह से। बाल चेतना...बाल साहित्यकारों की राष्ट्रीय संस्था, जिसके सचिव हैं जाने माने हस्ताक्षर डॉ.तारादत्त निर्विरोध। मुझे भगवतीप्रसाद गौतम, दीनदयाल शर्मा, हनुमानगढ़, डॉ.दर्शनसिंह आशट पटियाला(पंजाब), डॉ.अजय जनमेजय बिजनौर (उ.प्र.), डॉ.उदयवीर शर्मा बिसाऊ (राज.)और कमला रत्नू, जयपुर को यहां सम्मानित किया जाना था।

इस मुलाकात से पहले भाई दीनदयाल शर्मा का नाम ही सुना था। उनकी पुस्तक भी नहीं देखी थी। लेकिन उस दिन उनकी सक्रिय संवाद-पटुता ने मुझे बरबस ही छू लिया था। किसी भी रचनाकार को पढऩे-लिखने की प्रेरणा भले ही कहीं से भी मिले। मगर जब तक भीतर की ऊर्जा जागृत नहीं होती, रचनाकार क्या रचेगा। कैसे रचेगा-लिखेगा। किन्तु शर्मा जी की ऊर्जा ने तो उन्हें लेखक ही नहीं, कवि भी बना दिया। ...और वह केवल हिन्दी का ही नहीं बल्कि राजस्थानी का भी।


1975 से सतत् सृजन करते हुए उन्होंने कहानी, कविता व नाटक जैसी विधाओं में दो दर्जन के लगभग कृतियां बाल पाठकों के लिए रचीं। वे इतने सामर्थ्यवान साबित हुए कि बाल कथा संग्रह 'चिंटू-पिंटू की सूझ' पर उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी के शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार 1988-89 से नवाज गया। इसी प्रकार राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर द्वारा भी 'शंखेसर रा सींग' बाल नाटक पर जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य पुरस्कार 1998-99 दिया गया। यों देखा जाए तो दीनदयाल विशिष्ट व्यक्तित्व और अद्भुत कृतित्व के धनी हैं, समय की रफ्तार को समझते हैं और उसके अनुकूल ही पांव बढ़ाते चलाते हैं। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए. पी.जे.अब्दुल कलाम की सोच के अनुरूप रचित उनका बाल नाटक 'द ड्रीम्स' का विमोचन भी महामहिम के कर-कमलों से होना एक गरिमामयी उपलब्धि रही है।

शर्मा जी बाल पाक्षिक 'टाबर टोल़ी' के मानद साहित्य संपादक भी हैं। इनकी मिलनसारिता के कारण देश के अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार अपनी कलम से सतत् सहयोग देते रहते हैं। वैसे भी वे बच्चों की मानसिकता को समझते हैं। और उनकी जरूरतों पर पैनी नज़र रखते हैं। इसीलिए उनकी रचनाएं बालकों के स्तरानुकूल बन पड़ती हैं। जैसा सहज सरल उनका व्यक्तित्व है, वैसा ही पठनीय-सराहनीय है उनका कृतित्व। चाहे 'चिंटू-पिंटू की सूझ' व 'पापा झूठ नहीं बोलते' जैसी कथा पुस्तकें हों या 'कर दो बस्ता हल्का' व 'सूरज एक सितारा है' जैसे बाल काव्य संग्रह। चाहे 'द ड्रीम्स' जैसा अंग्रेजी बाल नाटक हो या 'चंदर री चतराई' जैसी राजस्थानी कथा कृति।

जहां उनमें कथ्य की मौलिकता पाठकों को आकृष्ट करती है, वहीं शिल्प भी प्रभावित किए बिना नहीं रहता। बोधगम्य एवं प्रवाहमयी भाषा के साथ आंचलिक शब्दों तथा प्रचलित मुहावरों-लोकोक्तियों का प्रयोग उनकी रचनात्मकता को अधिकाधिक रोचक व सार्थक बना देता है। सच तो यह है कि एक विशेष बोझिल गांभीर्य ओढ़कर जीने की आदत दीनदयाल ने पाली ही नहीं। वे मुस्कराते हैं, हँसते हैं और खिलखिलाते हैं तो अपनी कलम के बूते वैसी ही जीवंत रचनाएं भेंट करने का दायित्व भी ईमानदारी से निभाते हैं। चुस्त- सूरत और मस्त सीरत के स्वामी का सान्निध्य हमें आज भी प्राप्त है। प्रत्यक्ष नहीं तो कम से कम सप्ताह में दो-तीन बार फोन पर बात हो ही जाती है। सफर जारी रहे....हार्दिक मंगल कामनाएं।

-भगवतीप्रसाद गौतम,
1-त-8, दादाबाड़ी, कोटा, राज.,
फोन : 0744-2504165,






बच्चों के अखबार "टाबर टोळी " से साभार...
Edition : 16 - 31 March , 2010

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