Sunday, June 6, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में - 4

















खुशी के हर मौके पर बधाई देने वालों में सबसे अग्रणी

एक व्यक्ति बहुत अच्छा कवि, साहित्यकार, डॉक्टर, नेता, अध्यापक हो सकता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि वह एक बहुत अच्छा इंसान भी हो। लेकिन मैं एक ऐसे कवि व बाल साहित्यकार को जानता हूं, जिसमें अच्छे इन्सान के गुण भी शामिल हैं, और वो हैं श्री दीनदयाल शर्मा। इस साहित्यकार ने बाल साहित्य को सिर्फ लिखा ही नहीं है बल्कि उसे समाज में बच्चों की पीड़ा उजागर करने के वास्तविक प्रयास से भी जोड़ा है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण 1986 में 'राजस्थान बाल कल्याण परिषद्' की स्थापना करना है।

इनका एक असाधारण गुण जो मैंने देखा है वो हर समय नये साहित्यकारों की सहायता करना। प्राय: एक साहित्यकार नये साहित्यकारों को मन से सहयोग नहीं करते हैं। लेकिन श्री शर्मा इसके बिल्कुल अपवाद हैं। जब भी कोई नया साहित्यकार अपनी रचना के सन्दर्भ में इनसे बात करता है, ये पूरे मन से उस रचना की खूबियां एवं कमियां उस साहित्यकार को बताते हैं। उसमें प्रोत्साहन का संचार करते हैं और पूरे मन उसकी प्रशंसा करते हैं।

बाल मनोविज्ञान को समझकर ही कोई व्यक्ति बाल साहित्य का सृजन कर सकता है और बाल मनोविज्ञान को समझना, किसी साधारण व्यक्ति के स्तर का कार्य नहीं होता है। परन्तु दीनदयाल शर्मा जो एक ऐसी पृष्ठ भूमि के व्यक्ति हैं, जहां परिवार में साहित्य से जुड़ा कोई व्यक्ति नहीं था, ऐसे गांव में बचपन बीता, जहां साहित्य का कोई वातावरण नहीं था। फिर भी बाल-साहित्य में इन्होंने जिस बाल-मन का वर्णन किया है वह बाल साहित्य का सर्वोच्च सोपान है और यह बात इससे सिद्ध होती है कि इनको बाल साहित्य के देश के लगभग सभी पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। जिसमें राजस्थान साहित्य अकादमी का शम्भुदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार (1988-89) राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य पुरस्कार (1998-99) चन्द्रसिंह बिरकाली राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार चित्तौडग़ढ़ (1999) सर्वश्रेष्ठ बाल साहित्य पुरस्कार देहरादून (2001) आदि। दर्जनों साहित्य की पुस्तकें, आकाशवाणी से अनेक नाटकों का प्रसारण, हर काव्य मंच पर काव्य पाठ, ऐसी अनेक उपलब्धियां हैं, जो श्री शर्मा का नाम सारे देश में प्रसिद्ध कर रही हैं।

इनकी पुस्तक ''द ड्रीम्स" जो देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की थीम पर आधारित है। जिसका विमोचन 2005 में स्वयं डॉ. कलाम ने किया था। बाल साहित्य में यह उपलब्धि मील का एक पत्थर है। बाल साहित्य ही नहीं बल्कि नाटक, झलकी, हास्य कविताएं, गंभीर कविताएं आदि में भी इनका अमूल्य योगदान है। मंच पर जब श्री शर्मा अपनी हास्य क्षणिकाओं को प्रस्तुत करते हैं तो वृद्ध व जवान भी बच्चों जैसी निश्छल हंसी से लोट-पोट हो जाते हैं। माइक पर बार-बार श्री शर्मा को आमंत्रित करने का आग्रह किया जाता है। अनेक उपलब्धियां प्राप्त यह व्यक्ति मिट्टी से जुड़ा रहना ही पसन्द करता है।

साहित्यकार को थोड़ी सी प्रशंसा या छोटा सा एक पुरस्कार घमण्डी बना डालता है। लेकिन आप अगर दीनदयाल शर्मा से मुलाकात करते हो तो आपको कहीं भी यह आभास नहीं होगा कि आप एक राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार के साथ बैठे बातें कर रहे हैं। यह बाल साहित्यकार अपनी इतनी ऊंची उड़ान के बावजूद भी, अपने मित्रों अपने गांव को हमेशा अपने दिल के करीब रखता है, और मैं तो यह कहूंगा कि यह अपने-आप में एक अजूबा है कि आज इस स्वार्थी युग में दीनदयाल शर्मा अपने हर मित्र, रिश्तेदार, साहित्यकार को उसके खुशी के हर मौके पर, चाहे जन्मदिन हो, विवाह की वर्षगांठ हो या साहित्य की कोई उपलब्धि। उसे सुबह-सुबह शुभकामना देना नहीं भूलते। यह बात इस व्यक्ति के मन की निश्छलता को व्यक्त करती है। जो आज के युग में ढूंढऩा कितना मुश्किल है। सभी जानते हैं।

जो बातें मैंने कही है उनमें कहीं भी अतिश्योक्ति नहीं है, क्योंकि सहयोग और सेवा, साहित्य के अतिरिक्त इनका एक गुण है, जो भी इनके सम्पर्क में आता है इनके सरल, सहज साहित्य की तरह इनके सरल, सहज व्यवहार का भी कायल हो जाता है। अत: मैं इनकी प्रतिभा से, साहित्य जगत के लिए, समाज के लिए और भी बहुत सी अपेक्षाएं करता हूं और मुझे पूरा विश्वास है कि ये अपनी कलम से समाज व बाल साहित्य को नित नई ऊंचाइयां प्रदान करते रहेंगे। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।

सतीश गोल्यान, जसाना
मोबाइल : 09929230036


बच्चों के अखबार "टाबर टोळी " से साभार...
Edition : 16 - 31 March , 2010

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