Tuesday, June 8, 2010

दीनदयाल शर्मा : आपकी नज़र में - 11







जितेन्द्रकुमार सोनी 'प्रयास' गत वर्ष आर.ए.एस.पुरुष वर्ग में टॉपर...और इस वर्ष आई. ए. एस. में   29वीं  रैंक से चयनित..)



भाई दीद जी का मैंने खूब नाम सुना था मगर मिलने का पहला मौका  इनके अखबार 'टाबर टोल़ी' के लोकार्पण पर मिला। बड़ा ही स्नेहिल स्वभाव जिसमें रत्ती भर भी अपने नाम और यश की तुष्टि की या अहंकार की तलाश नहीं थी। शक्ल से मालूम होता है कि इन जैसा व्यक्तित्व केवल बाल साहित्यकार ही हो सकता है। वैसे भी बड़ों के लिए लिखने की तुलना में बच्चों के लिए और उन पर लिखना मुश्किल है और अगर ऐसे में दीद जी उन पर लिखते हैं तो निस्संदेह ही उनमें बाल मन को जानने की कुव्वत है। बच्चे यानी सहज, सरल, सरस और पारदर्शी और इनके जैसे ही इनके कलम चितेरे, हां, दीद जी ऐसे ही तो हैं। इनका 'टाबर टोल़ी' आता गया और मुलाकातें बढ़ाता गया और जितना मैं इनको मिलता गया उतना ही इनका मुरीद होता गया। 
राजस्थानी और हिंदी पर समानांतर पकड़ रखने वाले दीद साहब से जुड़ी एक बात कहना जरूरी है कि एक बार इनको मैंने एक रचना भेजी जिसमें मैंने 'यानि' लिखा था। एक दो दिन के बाद इनका फोन आया और बड़े ही दोस्ताना तरीके से मुझे बताया कि 'यानी' ऐसे लिखते हैं। सोचिये कि आज के दौर में सच्चा हितैषी बनकर कौन किसकी गलती बताता है। लोग तो तलाश करते हैं कि सामने वाला कोई गलती करे और हम उस पर अंगुली उठा सकें और ऐसे में इनका संशोधन इनकी छवि को और निखार गया।
   
अगली यादगार मुलाकात इनके आवास पर हुई और मौका था मेरी पहली काव्य कृति 'उम्मीदों के चिराग' के विमोचन का.... जिसका प्राक्कथन भी इन्होंने ही लिखकर दिया था। यहां यह स्वीकार करना जरूरी है पहले मैंने मेरी किताब का नाम 'पाप की गागर' सोचा था जो कि नकारात्मक प्रतीक था। इन्होंने कहा कि यह नाम आपकी छवि और कविताओं पर जंचता नहीं है। मुझे इनकी राय पसंद आई और फिर मैंने 'उम्मीदों के चिराग' रखा और बाद में इस नाम की मुझे भरपूर प्रशंसा मिली, पर इसके वास्तविक हकदार तो दीद जी ही हैं, उसी किताब का विमोचन अब भला मैं किसी और से कैसे करवाता? इसीलिए इनके आवास पर राजस्थानी कथाकार सत्यनारायण भाई व कवि नरेश मेहन और मेरे पिताजी आदि कई जने एकत्रित हुए व दीद साहब ने मेरी पहली किताब का विमोचन किया। 
समय-समय पर ये हमेशा अपनी सलाहों से मुझे परिष्कृत करते रहते हैं। कहां होता है....आज की दुनिया में किसी के बारे में इस तरह की संवेदनाएं रखना.......सफेद खून के इस दौर में दीद साहब ने हमेशा मुझे साहित्य की समझ से परिचित करवाया है। 'टाबर टोल़ी' को मैंने मेरे स्कूल के पुस्तकालय के लिए मंगवाया था। बच्चे सदैव इसका इंतज़ार करते...लगभग बीस से ज्यादा नेठराना के विद्यार्थियों की रचनाओं को स्थान देकर इन्होंने इन बच्चों का हौसला बढ़ाया है।
    
मेरे आर.ए.एस. में चयन होने पर..... वक्त निकाल कर ये मेरे मूल गांव धन्नासर आए तथा परिवार वालों से मिले और अपने मधुर स्वभाव से सबका मन जीत लिया। मैं और कुछ नहीं जानता..... सिर्फ ये एक पंक्ति है मेरे पास....

कल तक हज़ारों रंग के 
फानूस थे जहां....
झाड़ उनकी कब्र पर हैं 
और निशान कुछ नहीं......।
दीद साहब इस अवधारणा को मन में बसा चुके हैं इसीलिए स्वंसिद्धि की बजाय इनका प्रयास साथियों को आगे लाने में ही रहता है क्योंकि इन्हें पता है कि यही तरीका है किसी के मन में सदा के लिए बसे रहने का। हर वक्त सिखाते रहने की ललक और हर बात को सरल तरीके से कहना इनकी विशिष्ट कला है। मैंने इनसे बहुत कुछ सीखा है और आशा है कि इनका स्नेहिल आशीर्वाद सदा मेरे साथ रहेगा।

जितेन्द्रकुमार सोनी 'प्रयास'
रावतसर, जिला: हनुमानगढ़, राज.

3 comments:

  1. MAIN BHI BHAI JITENDER JI KE VICHARON SE SAHMAT HUN JO UNOHONE DD JI KE BARE ME RAKHE HAI.

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  2. Shukriya Deedji,
    aapne mere aapke prati jo vichaar hain unse sabko parichit karvaya.
    aapke aashirwad ki sada chah hai.........
    JK SONI

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  3. Deendyal ek saral hriday mitra hain. Unka jo gun mujhe hmesha aakrshit karta hai - vah hai sahajta. Bina kisi utejana ke apni bat kahne ka saleeka unke pas hai. Meri hardik shubhkamnayen deendyal ji ke sath hain.

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